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Tulsi Vivah 2018: जानें तुलसी विवाह सम्पूर्ण पूजा विधि एवं व्रत कथा | Tulsi Vivah Puja Vidhi and Vrat Katha

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Tulsi Vivah 2018: जानें तुलसी विवाह सम्पूर्ण पूजा विधि एवं व्रत कथा | Tulsi Vivah Puja Vidhi and Vrat Katha

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Tulsi Vivah Puja Vidhi and Vrat Katha : हिन्दू धर्म के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी व देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करने की प्रथा हैं| तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु या पत्थर के शालिग्राम से विवाह कराया जाता हैं| तुलसी का पौधा बहुत ही पवित्र एवं पूजनीय माना जाता हैं| तुलसी की नियमित पूजा से सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती हैं| बिना तुलसी के विष्णुजी की पूजा अधूरी मानी जाती हैं|

तुलसी विवाह 2018 कब है (Tulsi Vivah 2018 Date) :-

इस साल तुलसी विबाह 20 नवम्बर 2018 दिन मंगलवार को है| तुलसी विवाह करने से कई जन्मों के पापों का नाश होता है| इस दिन व्रत रखने से अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है|

तुलसी विवाह पूजा विधि (Tulsi Vivah Puja Vidhi) :- 

* तुलसी विवाह के दिन व्रत रखना चाहिए|

* घर के आंगन में तुलसी के साथ शालिग्राम जो भगवान विष्णु का प्रतिरूप है उन्हें स्थापित करें|

* तुलसी जी के पौधे को लहंगा चुनरी उड़ाए व विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाए क्योंकि पीला रंग विष्णु जी का प्रिय रंग है|

* तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे को साफ सुथरा करके सजाए उनके पास सुन्दर सी रंगोली बनाए|

* उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाए|

* कलश स्थापना करे और सोलह श्रंगार की वस्तुए चढ़ाए|

* तुलसी जी की चुनरी का भगवान विष्णु जी के पीले पटके से गठबंधन करे उसमें अक्षत, सुपारी कुछ पैसे के साथ गठबंधन करें|

* भगवान विष्णु का मंत्र “ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः” और माता तुलसीजी का मंत्र “ॐ तुलसाये नमः” के साथ विधिवत पूजा करें|

* भगवान विष्णु को आंवले का भोग जरूर लगाये| ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन जितने आंवले भगवान विष्णु को चढ़ाते है उतने ही वर्ष स्वर्ग में जगह निश्चित हो जाती है, इसलिए 11 आंवले का भोग अवश्य लगाये|

* पंचामृत का भोग लगाये फिर विधिवत पूजा करें|

* आरती करें और विवाह की सारी रस्में निभाये| तुलसी माता जी की आरती हिंदी में

* द्वादशी के दिन पुनः तुलसी जी और भगवान विष्णुजी  की पूजा करें |

* प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें|

* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें|

* तुलसी के पौधे को किसी मंदिर या ब्राह्मण को दान दे|

इससे आपको कन्यादान के बराबर पुण्य फल मिलता है| इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाकर जातक के सारे पाप नष्ट हो जाते है|

तुलसी विवाह व्रत कथा (Tulsi Vivah Vrat Katha) :-

तुलसी जी या तुलसी का पौधा पूर्व जन्म में लड़की थी जिसका नाम वृन्दा था| राक्षस कुल में उनका जन्म हुआ था| बचपन से ही वृन्दा भगवान विष्णु की परम भक्त थी| जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ, वह बड़ा ही वीर और पराक्रमी था| उसकी वीरता का रहस्य था उसकी पत्नी वृन्दा का पवित्रता धर्म उसी के प्रभाव से वह सर्वजयी बना हुआ था|

एक बार जलंधर और देवताओं के बीच युद्ध हुआ, जब जलंधर युद्ध के लिए जा रहे थे तब वृन्दा ने कहा जब तक आप युद्ध में रहेंगे तब तक मैं आपकी जीत के पूजा व अनुष्ठान करुँगी| उनके इस संकल्प के प्रभाव से जलंधर को युद्ध में हराना नामुमकिन था| तब सारे देवतागण भगवान विष्णु जी के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई| उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृद्धा का पवित्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया|

भगवान विष्णु ने उसके पति जलंधर का रूप रखा और वृन्दा के पास गए जैसे ही वृन्दा ने जलंधर को देखा तो वह पूजा से उठ खड़ी हुई और जलंधर के चरणों को स्पर्श किया| उधर उसका पति जलंधर जो देवताओं से युद्ध कर रहा था वृंदा का सतीत्व भंग होते ही मारा गया| जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ भगवान उसी समय पत्थर के हो गए|तब सभी देवता हाहाकार करने लगे| माता लक्ष्मी रोने लगी और प्रार्थना करने लगी|

तब वृंदा जी ने अपना श्राप वापस ले लिया और वृंदा अपने पति के साथ सती हो गयी| उनकी रख से वही पे एक पौधा निकला तब विष्णु जी बोले इस पौधे का नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा, और मैं बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करूँगा| तभी से तुलसी जी की पूजा सभी लोग करने लगे| जो मनुष्य तुलसी जी के साथ मेरा विवाह करेगा वह परम धाम को प्राप्त होगा| तुलसी जी का विवाह कार्तिक मास के देव उठनी एकादशी के दिन किया जाता हैं|

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