देव उठनी एकादशी सम्पूर्ण पूजा विधि (Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi in Hindi)
हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्त्व है हर माह दो एकादशी पड़ती है, इन सभी एकादशियों में देव उठनी एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन श्री हरि विष्णुजी अपनी शयन निंद्रा से जाग्रत होते है और सृष्टि का कार्यभार पुनः संभालते है| आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से चार महीने के लिए जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु शयन करने क्षीरसागर में चले जाते है और चतुर्मास समाप्त होने के पश्चात कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु अपनी निंद्रा से उठते है इसलिए इसे देव उठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है|
कब मनाई जाती है देव उठनी ग्यारस एवं प्रबोधिनी एकादशी? (Dev Uthani Gyaras, Probodhini Ekadashi Kab Manai Jati Hai)
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी या प्रबोधनी एकादशी कहा जाता है| देव के शयन करने पर इन चतुर्मास में कोई भी मंगल कार्य नहीं होते है| देव उठनी एकादशी के साथ ही मंगल कार्य की पुनः शुरुआत हो जाती है|
कब है देव उठनी एकादशी 2018? (Dev Uthani Ekadashi 2018 Date)
साल 2018 में देव उठनी एकादशी 19 नवंबर दिन सोमवार को है|
एकादशी तिथि का प्रारम्भ :- 19 नवंबर 2018 दिन सोमवार को दोपहर 2 बजकर 29 मिनट से लेकर
एकादशी तिथि का समापन :- 20 नवंबर 2018 दिन मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 40 मिनट तक रहेगी|
व्रत पारण करने का मुहूर्त :- 20 नवंबर 2018 दिन मंगलवार को सुबह 6 बजकर 47 मिनट और 17 सेकंड से लेकर 8 बजकर 55 मिनट तक रहेगा| व्रत पारण करने की कुल अवधि 2 घंटा 7 मिनट है|
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देव उठनी ग्यारस एवं प्रबोधिनी एकादशी का महत्व (Dev Uthani Gyaras, Probodhini Ekadashi Ka mahatw)
देव उठनी एकादशी में उपवास रखने का विशेष महत्व है| इस व्रत को करने से मोक्ष, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है| देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का शालिग्राम से किया जाता है| इस दिन बहुत से लोग धूम-धाम से तुलसी विवाह का आयोजन करते है| अगर किसी व्यक्ति के कन्या नहीं है तो वह तुलसी विवाह करके कन्यादान का सुख प्राप्त कर सकता है|
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देव उठनी ग्यारस एवं प्रोबधिनी एकादशी पूजा विधि (Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi in Hindi)
प्रबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन कर उन्हें जगाने का आवाहन किया जाता है| प्रबोधनी एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है –
1:- प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें|
2:- भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प ले|
3:- घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाए लेकिन धूप में चरणों को ढक दें|
4:- इसदिन निराहार व्रत किया जाता है और दूसरे दिन द्वादशी तिथि को पूजा करके व्रत का पारण किया जाता है|
5:- आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, गन्ना, सिंघाड़े रखकर डलिया से ढक दें|
6:- इसदिन रात्रि में घरों के बाहर व पूजा स्थल पर दिये जलाये जाते हैं|
7:- रात में परिवार के सभी सदस्यों समेत भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए|
8:- भगवत गीता व भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करना चाहिए|
9:- इसके बाद भगवान विष्णु को शंख, घंटा आदि बजाकर उठाना चाहिए|
10:- अंत में कथा सुनकर प्रसाद का वितरण करें|
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